हार मानूंगा नहीं: आशीष रंजन चौधरी

हार मानूंगा नहीं: आशीष रंजन चौधरी

गणित में हमेशा से ही बेहद कमजोर रहा हूं, इतना कमजोर कि बारहवीं की परीक्षा में तो गणित में फेल तक हो गया था।
लोगों ने काफ़ी नसीहत दी थी कि जिंदगी ज़ीने के लिए गणित का आना बहुत ज़रूरी है लेकिन अपने स्वभावत: मैंने कभी लोगों की सुनी नहीं और मुझे इसकी अच्छी-खासी क़ीमत भी चुकानी पड़ी और सिलसिला अब तक थमा नहीं है।

पिछले कुछ दिन व्यक्तिगत रूप से मेरे लिए कठिन रहे, इन दिनों साहित्य ने मेरा बहुत साथ दिया, कुंवर नारायण साहब की कविता ‘अंतिम ऊंचाई’ की कुछ पंक्तियों को मन ही मन खूब दोहराया करता था,
“जब तुम अपने मस्तक पर
बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे
और काँपोगे नहीं—
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं
सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में।”

और मैंने हिम्मत न हारने का फैसला किया था, मैं वापस से वहीं आ कर खड़ा था जहां से सफ़र की शुरुआत की थी। मेरे अंदर हमेशा से एक बेचैनी रही हैं, वो इस बार थोड़ी बढ़ गई थी। सोच नहीं पा रहा था कि अब आगे कौन-सा रास्ता इख्तियार किया जाए।
लेकिन इक़बाल साहब ने कुछ सोच-समझकर ही कहा था कि ‘सितारों के आगे जहां और भी हैं’, उन्हीं की बातों को तस्लीम कर मैंने भी ‘सम्यक भारत’ नाम की एक ज़मीं तलाशी।

डोमेन लिया, होस्टिंग खरीदी और 13 नवंबर को वेबसाइट लॉन्च कर दी। हालांकि मुझे कभी से वेबसाइट बनानी नहीं आती थी, वेबसाइट बनाने में मेरे पसीने छूट गए, काफ़ी मेहनत-मशक्कत करनी पड़ी, सब कुछ यूट्यूब से ही सीखकर करना पड़ा‌ क्योंकि हमारे विश्वविद्यालय और विभाग दोनों जगह सीखाने वालों की विद्वता अपरंपार है इसलिए उनके विषय में ज्यादा कुछ नहीं लिखूंगा।

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वेबसाइट लॉन्च करते ही वेबसाइट पर तकनीकी समस्याएं आनी शुरू हो गयी, दो दिनों तक परेशान रहा तब जाकर समस्या हल हुई।
वेबसाइट बन चुकी थी और अब ठीक अवस्था में भी थी, मैं अकेले अब कुछ अधिक नहीं कर सकता था।
ऐसे में दोस्त ऋषि राज शुक्ल ने मेरा हाथ थामा, उसने ‘सम्यक भारत’ में सह-संपादक की जिम्मेदारी संभाली और बखूबी उसे निभाया भी। हम दोनों ने मिलकर लोगों से उनके आलेख मांगने शुरू किए, सच कहूं तो हमें उम्मीद से अधिक सकारात्मक प्रतिक्रियाएं मिली, विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से लेकर शिक्षकों तक सबने हमारे प्रयास की काफ़ी प्रशंसा की।

लेकिन अब भी ‘सम्यक भारत’ में प्रधान संपादक का एक पद रिक्त था, जो कि बड़ी बहन वेदिका मिश्रा के आने से रंजित हुआ।
वेदिका दी ने पहले भी संपादन के काफ़ी कार्य किए हुए हैं, वह‌ विश्वविद्यालय की पत्रिका ‘सावित्री दर्पण’ की संपादक भी रह चुकी है और वर्तमान में भी एक पत्रिका का संपादन कार्य देख रही है।
जब हमने उनसे ‘सम्यक भारत’ के प्रधान संपादक का दायित्व संभालने हेतु आग्रह किया तो उन्होंने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बाद भी हमारे आग्रह को स्वीकार किया, और वर्तमान में सम्यक भारत के प्रधान संपादक का दायित्व संभाल रही हैं।

हमें मालूम है कि अभी काफी काम बाकी है, संपादन मंडल का विस्तार करना है, नए लोगों को अपने विचार रखने के अवसर प्रदान करने है और ‘सम्यक भारत’ को एक अच्छे मक़ाम तक ले जाना है। सफ़र की शुरुआत ही की है, अभी मंज़िल काफ़ी दूर है‌ लेकिन हम हार मानने वालों में से नहीं है, हम तो अटल जी कि पंक्तियों को दोहरते हुए अटल खड़े रहेंगें,
‘हार नहीं मानूंगा,
रार नहीं ठानूंगा
काल के कपाल पर
लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं,
गीत नया गाता हूं।’

(यहां तक पढ़ने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार।)

-आशीष रंजन चौधरी

संस्थापक, संपादक (सम्यक भारत)

One thought on “हार मानूंगा नहीं: आशीष रंजन चौधरी

  1. विद्यार्थियों की प्रतिभा को निखारने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है। निश्चित ही सम्यक् भारत सम्यक् ढंग से कार्य करते हुए आगे बढ़ेगा
    व उत्तरोत्तर विकास करेगा। सम्यक् भारत अपने लक्ष्य की प्राप्ति करे,यही मेरी कामना है।

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