अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले बिरसा

Birsa

भारत में ब्रिटिश साम्राज्य का शासन लगभग 200 साल तक चला, लेकिन यह समय उनके लिए आसान नहीं था। कई भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों ने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया, जिनमें एक प्रमुख नाम था बिरसा मुंडा।बहुत कम उम्र में अंग्रेजों को चुनौती देने वाले बिरसा मुंडा एक आदिवासी नेता और स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने न केवल भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया, बल्कि अपने समुदाय के उत्थान के लिए भी कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनकी कार्यशैली और साहस ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया।

फ़ाइल फोटो- बिरसा मुंडा

बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को हुआ था। उनका प्रारंभिक जीवन सामान्य था, लेकिन कुछ समय बाद उन्होंने ब्रिटिश शासकों की नीतियों को समझा और उनके खिलाफ संघर्ष करना शुरू किया। उनकी पढ़ाई का आरंभ सलगा में हुआ, लेकिन बाद में उन्हें एक मिशन स्कूल में भेजा गया, जहां उन्होंने ईसाई धर्म अपनाया। हालांकि, वहां उन्होंने यह महसूस किया कि ब्रिटिश शासक और मिशनरी आदिवासियों को धर्मांतरित करने का प्रयास कर रहे हैं। इसके बाद, उन्होंने इस धर्म को त्याग दिया और ‘बिरसैत’ नामक एक नया धर्म स्थापित किया, जिसे आदिवासी समुदाय ने अपनाया।

बिरसा मुंडा ने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ एकजुट होने का आह्वान किया और उन्हें टैक्स न देने की अपील की। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि अब ब्रिटिश शासन समाप्त हो चुका है और मुंडा राज की शुरुआत हो रही है। उनके इस आव्हान ने आदिवासी समाज में एक नई जागृति लायी।उनकी क्रांति ने अंग्रेजों को हिला कर रख दिया। मुंडा समुदाय के लोगों ने अपने अधिकारों के लिए संघर्ष शुरू किया और ‘उलगुलान’ नामक आंदोलन की शुरुआत की। इसमें ब्रिटिश शासन और जमींदारों के खिलाफ तीव्र विरोध प्रदर्शन हुए। इसके परिणामस्वरूप, अंग्रेजों ने बिरसा मुंडा की गिरफ्तारी के लिए 500 रुपये का इनाम रखा।

बिरसा को पहली बार 1895 में गिरफ्तार किया गया था और उन्हें दो साल की सजा हुई थी। जेल में रहते हुए उनकी प्रतिरोध भावना और भी प्रबल हुई। जेल से रिहा होने के बाद, उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ गुप्त बैठकों का आयोजन किया और आंदोलन को और मजबूत किया।आखिरकार, 3 मार्च 1900 को बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर लिया गया। एक बड़े संघर्ष के बाद, बिरसा को 9 जून 1900 को जेल में उनकी संदिग्ध मौत के बाद शहीद कर दिया गया। कहा जाता है कि उन्हें जहर देकर मारा गया था, हालांकि अंग्रेजों ने इसे बीमारी, विशेष रूप से हैजा, का परिणाम बताया।आज भी बिरसा मुंडा को उनके साहस और संघर्ष के कारण आदिवासी समुदाय में भगवान के रूप में पूजा जाता है, और उनका योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में हमेशा याद किया जाएगा।

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