Enviroment: प्रदूषण को हम कैसे परिभाषित कर सकते हैं? आम बोल-चल की भाषा में कहा जा सकता है की प्रदूषण हमारे पर्यावरण में हानिकारक पदार्थों का परिचय है। प्रदूषण के कारक प्राकृतिक हो सकते हैं, जैसे ज्वालामुखीय राख, या फिर ये मानव गतिविधियों से संबंधित जैसे कि औद्योगिक गतिविधियों द्वारा उत्पादित कचरा।
प्रदूषण की वजह से हमारी पृथ्वी पर जीवन के लिए आवश्यक वायु, जल, और जमीन की गुणवत्ता को नुकसान पहुँच रहा है। प्रदूषण एक वैश्विक समस्या बन चुकी है। विश्व के विकसित देशों जैसे अमरीका, इंग्लैंड, फ़्रांस के साथ-साथ पिछड़े देश जैसे सूडान, चाड भी प्रदूषण की गिरफ्त में आ चुके हैं।
पर्यावरण प्रदूषण के प्रभाव अत्यंत ही गंभीर एवं दीर्घ-अवधि वाले हो सकते है। फलतः मनुष्यों के साथ-साथ पेड़-पौधों एवं जीव-जंतुओं जीवन के साथ-साथ मृदा, जल एवं वायु की गुणवत्ता भी प्रदूषण की वजह से प्रभावित हो रहे है। इन प्रभावों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष, दोनों रूप में देखा एवं महसूस किया जा सकता है।
प्रदूषण का जीवन और पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अत्यंत ही गंभीर प्रभावों के उदाहरण निम्न है.
जैव विविधता को नुकसान पहुंचना
प्रदूषण से जैव विविधता को गंभीर नुकसान होता है, और यह प्रभाव कई प्रकार से प्रकट होता है:
वायु प्रदूषण: वायु में हानिकारक गैसों (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड) और सूक्ष्म कणों का उत्सर्जन पेड़ों, पौधों और जीवों को प्रभावित करता है। अम्ल वर्षा के रूप में ये गैसें भूमि और जल स्रोतों को अम्लीय बना देती हैं, जिससे पेड़-पौधों और मछलियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
जल प्रदूषण: उद्योगों से निकलने वाले रसायन, कृषि में प्रयुक्त कीटनाशक और उर्वरक, तथा प्लास्टिक कचरा जल स्रोतों को प्रदूषित करते हैं। इसका परिणाम होता है कि जल में रहने वाले जीव, जैसे मछलियाँ और अन्य जलीय जीव, स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करते हैं, जो अंततः उनके विलुप्त होने का कारण बन सकता है।
मृदा (मिट्टी) प्रदूषण: अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों का प्रयोग मिट्टी की गुणवत्ता को नुकसान पहुँचाता है। इससे पौधों का विकास बाधित होता है, और उनके पोषक तत्वों में कमी हो जाती है, जिससे खाद्य श्रृंखला पर बुरा असर पड़ता है।
प्लास्टिक प्रदूषण: प्लास्टिक का कचरा वन्य जीवों और जलीय जीवों के लिए बड़ा खतरा है। प्लास्टिक के कण खाने से जीवों का स्वास्थ्य खराब होता है और कई बार उनकी मृत्यु तक हो जाती है।
शोर प्रदूषण: शहरी क्षेत्रों और औद्योगिक गतिविधियों से उत्पन्न शोर पर्यावरण में कई जीवों के संचार और प्रजनन में बाधा डालता है। इसका असर विशेष रूप से पक्षियों, समुद्री स्तनधारियों और जलीय जीवों पर अधिक देखा जाता है।
जलवायु परिवर्तन: प्रदूषण के कारण ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ना जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा देता है। तापमान में वृद्धि से प्राकृतिक आवास बदलते हैं और कई प्रजातियाँ विलुप्त होने के खतरे में आ जाती हैं।
इन सब प्रभावों के कारण जैव विविधता को गंभीर खतरा है और संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। प्रदूषण को नियंत्रित करना जैव विविधता और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है।
ध्रुवों पर बर्फ का पिघलना
प्रदूषण से ध्रुवीय क्षेत्रों पर बर्फ पिघलने का मुख्य कारण ग्रीनहाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन है। जब मानव गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसें (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) वायुमंडल में बढ़ती हैं, तो ये गैसें सूर्य की गर्मी को वायुमंडल में फँसाती हैं और धरती का तापमान बढ़ाती हैं, जिसे ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। इस प्रक्रिया के कारण तापमान में वृद्धि होती है, जो ध्रुवीय बर्फ को पिघलाने में योगदान देती है।
ध्रुवीय क्षेत्रों पर बर्फ के पिघलने के पीछे कुछ मुख्य कारण हैं:-
वायुमंडल में गर्मी का बढ़ना: ग्रीनहाउस प्रभाव के कारण वैश्विक तापमान बढ़ रहा है, जिससे ध्रुवीय क्षेत्रों में भी तापमान में वृद्धि हो रही है और बर्फ तेजी से पिघल रही है।
काले कार्बन का जमाव: प्रदूषण में शामिल काले कार्बन के कण वायुमंडल में जाकर बर्फ पर जम जाते हैं, जिससे बर्फ का रंग गहरा हो जाता है। गहरे रंग की सतहें अधिक सूर्य-ऊष्मा अवशोषित करती हैं, जिससे बर्फ जल्दी पिघलती है।
समुद्र का तापमान बढ़ना: महासागरों का तापमान भी प्रदूषण के कारण बढ़ रहा है, जिससे ध्रुवीय क्षेत्रों के आसपास का पानी गर्म हो जाता है और बर्फ के पिघलने की प्रक्रिया तेज हो जाती है।
दैनिक तापमान में सतत वृद्धि
प्रदूषण के कारण दैनिक तापमान में वृद्धि का मुख्य कारण ग्रीनहाउस प्रभाव है। प्रदूषण से वातावरण में ग्रीनहाउस गैसें (जैसे CO₂, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड) बढ़ रही हैं। ये गैसें सूर्य से आने वाली गर्मी को पृथ्वी की सतह पर रोके रखती हैं और उसे वापस अंतरिक्ष में जाने नहीं देतीं। इस प्रक्रिया को ग्रीनहाउस प्रभाव कहा जाता है, जिससे धरती का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है।
प्रदूषण के अन्य कारण जो तापमान वृद्धि में योगदान देते हैं:
वाहन एवं उद्योगों से उत्सर्जन: वाहनों और फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं में हानिकारक गैसें होती हैं, जो वायुमंडल में गर्मी को बढ़ावा देती हैं।
वनों की कटाई: पेड़ वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। जब जंगल काटे जाते हैं, तो कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती है, जिससे तापमान में वृद्धि होती है।
प्लास्टिक और कचरे का जलना: प्लास्टिक और अन्य कचरे को जलाने से भी हानिकारक गैसें उत्सर्जित होती हैं, जो ग्रीनहाउस प्रभाव को और बढ़ाती हैं।
तेल, कोयला, और प्राकृतिक गैस का अधिक उपयोग: इन जीवाश्म ईंधनों का जलना वायुमंडल में भारी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है, जो तापमान में वृद्धि का प्रमुख कारण है।
इस प्रकार, प्रदूषण के कारण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों की बढ़ती मात्रा से दैनिक तापमान में स्थायी वृद्धि हो रही है।
महासागरों एवं सागरों के जल-स्तर में वृद्धि
महासागरों और सागरों के जलस्तर में वृद्धि का मुख्य कारण ग्लोबल वार्मिंग और प्रदूषण है। प्रदूषण के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ रहा है, जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ता है। इस तापमान वृद्धि से निम्नलिखित प्रभाव होते हैं, जो समुद्र के जलस्तर को बढ़ाने में सहायक होते हैं.-
ग्लेशियरों और हिमनदों का पिघलना: पृथ्वी के ध्रुवीय क्षेत्रों और पहाड़ों पर मौजूद ग्लेशियर और हिमनद (ग्लेशियर्स और आइस शेल्फ) तेजी से पिघल रहे हैं। यह पिघला हुआ पानी समुद्र में जाकर जलस्तर को बढ़ा देता है।
थर्मल एक्सपैंशन: तापमान बढ़ने से समुद्र का पानी गर्म होता है, और गर्म पानी अधिक जगह घेरता है। इसे थर्मल एक्सपैंशन कहते हैं, जिसके कारण समुद्र का स्तर धीरे-धीरे बढ़ता है।
मेनग्रोव और मूंगे की चट्टानों को नुकसान: प्रदूषण और अन्य मानव गतिविधियों से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र, जैसे मेनग्रोव वन और मूंगे की चट्टानें, नष्ट हो रहे हैं। ये प्राकृतिक अवरोध पानी को रोके रखने में सहायक होते हैं, और इनके नष्ट होने से जलस्तर में वृद्धि की संभावना बढ़ जाती है।
इन कारणों से समुद्र का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है, जिससे तटीय क्षेत्रों में बाढ़, भूमि कटाव और जैवविविधता को खतरा हो रहा है।
नई-नई बीमारियों का उदय होना
प्रदूषण से कई नई-नई बीमारियों का उदय हो रहा है, क्योंकि वायु, जल, मृदा और ध्वनि प्रदूषण के कारण पर्यावरण में हानिकारक रसायन, धूल, धुंआ और अन्य विषैले पदार्थ फैल रहे हैं। इनसे उत्पन्न होने वाली बीमारियाँ मुख्यतः निम्न प्रकार से होती हैं:
वायु प्रदूषण: हवा में घुले हुए प्रदूषक तत्व जैसे पीएम 2.5, पीएम 10, सल्फर डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड आदि साँस के माध्यम से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं। इससे अस्थमा, ब्रोंकाइटिस, फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग और स्ट्रोक जैसी बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं। साथ ही वायु प्रदूषण से इम्यून सिस्टम भी कमजोर हो जाता है, जिससे संक्रामक बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
जल प्रदूषण: जल में हानिकारक रसायन, भारी धातुएं और कीटनाशक मिल जाने से लोग दूषित पानी का सेवन करते हैं, जिससे हैजा, टाइफाइड, पीलिया, किडनी की समस्याएं और पाचन तंत्र के रोग फैलते हैं। इसमें पाई जाने वाली माइक्रोप्लास्टिक से कैंसर और हॉर्मोनल असंतुलन जैसी गंभीर समस्याएँ भी हो सकती हैं।
मृदा प्रदूषण: रसायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और अन्य रासायनिक पदार्थों के अत्यधिक उपयोग से मिट्टी दूषित होती है, जिससे उसमें उगने वाली फसलें भी विषैली हो जाती हैं। ये फसलें खाने से मनुष्यों में न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर्स, कैंसर और अन्य क्रॉनिक बीमारियाँ उत्पन्न हो सकती हैं।
ध्वनि प्रदूषण: अत्यधिक शोर से कानों पर बुरा असर पड़ता है, जिससे सुनने की क्षमता में कमी, उच्च रक्तचाप, तनाव, और अनिद्रा जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। लंबे समय तक ध्वनि प्रदूषण में रहने से मानसिक तनाव और दिल की बीमारियों का खतरा भी बढ़ता है।
रासायनिक प्रदूषण: घर में इस्तेमाल होने वाले कई रसायन, जैसे कि सफाई उत्पाद, कीटनाशक, पेंट और प्लास्टिक के उत्पादन से हवा में विषैले रसायन फैलते हैं। इससे त्वचा संबंधी बीमारियाँ, एलर्जी, और कैंसर जैसे रोग हो सकते हैं।
इस प्रकार, प्रदूषण के कारण हमारे पर्यावरण में हानिकारक तत्वों का जमाव बढ़ रहा है, जिससे कई नई बीमारियाँ उत्पन्न हो रही हैं और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल रही हैं।
अम्लीय वर्षा की मात्रा में वृद्धि
प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा (एसिड रेन) की मात्रा में वृद्धि होती है। यह समस्या मुख्य रूप से औद्योगिक गतिविधियों, कोयला और तेल जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से उत्पन्न होती है। ये गतिविधियाँ वायुमंडल में सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) और नाइट्रोजन ऑक्साइड्स (NOₓ) जैसी हानिकारक गैसों को छोड़ती हैं।
जब ये गैसें वातावरण में प्रवेश करती हैं, तो यह जलवाष्प के साथ प्रतिक्रिया करके सल्फ्यूरिक और नाइट्रिक एसिड में परिवर्तित हो जाती हैं। ये अम्ल वर्षा के रूप में भूमि पर गिरते हैं, जिससे जल स्रोत, मृदा, वनस्पतियाँ और इमारतें प्रभावित होती हैं। अम्लीय वर्षा के कारण नदियों और झीलों का पानी अधिक अम्लीय हो सकता है, जिससे वहां रहने वाले जीवों के लिए खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
इसका पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है, जैसे: मृदा का अम्लीकरण: इससे मिट्टी की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
पानी की अम्लीयता बढ़ना: मछलियों और अन्य जलीय जीवों के लिए खतरा बढ़ता है।
वनस्पतियों को नुकसान: पेड़-पौधों की वृद्धि पर असर पड़ता है।
अम्लीय वर्षा की समस्या को नियंत्रित करने के लिए प्रदूषण को कम करना, जैसे स्वच्छ ईंधन का उपयोग और औद्योगिक उत्सर्जन पर नियंत्रण, आवश्यक है।
जलवायु-परिवर्तन
प्रदूषण जलवायु परिवर्तन का एक प्रमुख कारण है, और इसके कई पहलू हैं जिनसे यह समस्या बढ़ती है:
ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन: कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस जैसे जीवाश्म ईंधनों के जलने से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂), मीथेन (CH₄) और नाइट्रस ऑक्साइड (N₂O) जैसी ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में पहुंचती हैं। ये गैसें पृथ्वी की गर्मी को फँसा लेती हैं, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है और जलवायु परिवर्तन होता है।
वाहन और उद्योग प्रदूषण: कारों, ट्रकों, जहाजों और उद्योगों से निकलने वाला प्रदूषण वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ाता है। इनके कारण हवा में हानिकारक पदार्थ जैसे कि कार्बन मोनोऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड बढ़ते हैं, जो जलवायु को प्रभावित करते हैं।
वनों की कटाई: वनों की कटाई से कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण कम हो जाता है क्योंकि पेड़ इस गैस को सोखते हैं। इसके परिणामस्वरूप वायुमंडल में CO₂ की मात्रा बढ़ जाती है, जो जलवायु को प्रभावित करती है।
कृषि और पशुपालन: कृषि गतिविधियों और पशुपालन से मीथेन और नाइट्रस ऑक्साइड जैसे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। ये गैसें भी तापमान को बढ़ाने में सहायक होती हैं।
औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक: औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक का उपयोग भी जलवायु पर बुरा प्रभाव डालता है। प्लास्टिक जलाने से हानिकारक रसायन निकलते हैं जो वायुमंडल में ग्रीनहाउस प्रभाव को बढ़ाते हैं।
इन सभी कारणों से पृथ्वी का तापमान धीरे-धीरे बढ़ रहा है, जिससे मौसम में असामान्य बदलाव, प्राकृतिक आपदाओं की वृद्धि, और जीव-जंतुओं के लिए आवास संकट जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
प्रदूषण अब सिर्फ एक पर्यावरणीय मुद्दा नहीं रहा है; मानव स्वास्थ्य, सामुदायिक कल्याण और सामाजिक न्यायसम्य हिस्सेदारी आदि पर दीर्घकालिक प्रभावों के कारण यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दा भी बन चुका है। प्रदूषण सामाजिक जीवन को कैसे प्रभावित कर रहा है उसका वर्णन निम्न है:
प्रदूषित हवा के संपर्क में आने से श्वसन रोग, हृदय संबंधी समस्याएं और अन्य स्वास्थ्य स्थितियां हो सकती हैं। कमजोर समूह, खासकर बच्चे, बुजुर्ग एवं पहले से ही शारीरिक रूप से अस्वस्थ्य लोग नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
प्रदूषित जल से पेट से संबंधित विकार, तंत्रिका संबंधी विकार और यहां तक कि कैंसर सहित गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं आम लोगों को प्रभावित कर रही हैं। प्रदूषित जल स्रोतों पर निर्भर समुदायों को महत्वपूर्ण स्वास्थ्य जोखिमों का सामना करना पड़ता है।
प्रदूषित मिट्टी भोजन में हानिकारक पदार्थों के संचय का कारण बन सकती है, जिसका सेवन करने पर स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हो सकती हैं। औद्योगिक स्थलों के आस-पास के गुजर-बसर करने वाले समुदाय अक्सर इस तरह के संदूषण से पीड़ित होते रहते हैं।
प्रदूषण अक्सर कम आय एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े समुदायों को अधिक गंभीर रूप से प्रभावित करता है।
यह देखा गया है की ऐसे समुदाय अक्सर औद्योगिक स्थलों के आस-पास या राजमार्गों के करीब रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर अधिक है। यह मौजूदा सामाजिक असमानताओं को बढ़ाता है, क्योंकि इन समुदायों के पास इन स्थितियों को सामना करने या उनसे बचाव के लिए आवशेक संसाधनों नहीं होते है।
प्रदूषण के प्रभावों का असमान वितरण पर्यावरणीय न्याय के मुद्दों को उठाता है।
प्रदूषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं से व्यक्तियों और समाज के लिये स्वास्थ्य देखभाल की लागत में वृद्धि हो रही है, जो पहले से ही संघर्षरत समुदायों पर बोझ डाल रही है।
प्रदूषण प्राकृतिक संसाधनों को नष्ट कर रहा है जिन पर समुदाय अपनी आजीविका के लिये निर्भर हैं, जैसे मछली पकड़ना, कृषि और पर्यटन। इससे बेरोजगारी, गरीबी और सामाजिक अशांति हो बढ़ावा मिल रहा है।
बढ़ते प्रदूषण का स्तर वातावरण को असुरक्षित और कम-सुखद बनाकर जीवन की गुणवत्ता को कम करता है। इससे तनाव, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों और कल्याण में सामान्य गिरावट हो रही है।
प्रदूषण सामुदायिक संबंधों को तनाव दे सकता है, क्योंकि लोग प्रभाव के विभिन्न स्तरों का अनुभव कर सकते हैं या प्रदूषण को संबोधित करने के तरीके पर परस्पर विरोधी विचार रख सकते हैं। इससे सामाजिक तनाव और सामुदायिक सामंजस्य टूट सकता है।
प्रदूषण के प्रभाव अक्सर लंबे समय तक चलने वाले होते हैं, जिसका अर्थ है कि भविष्य की पीढ़ियों को आज के पर्यावरणीय क्षरण के परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
विकासशील देश, जो अक्सर प्रदूषण के लिए कम जिम्मेदार होते हैं, प्रदूषण से संबंधित परिणामों से सबसे अधिक पीड़ित होते हैं, जैसे कि चरम मौसम की घटनाएं, खाद्य असुरक्षा और जैव विविधता का नुकसान।
प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में अक्सर मज़बूत पर्यावरणीय नियमों और प्रवर्तन पर ज़ोर देना शामिल होता है, जिससे सामाजिक परिवर्तन हो सकते हैं और शक्ति की गतिशीलता में बदलाव हो सकता है।
संक्षेप में, प्रदूषण भी एक सामाजिक मुद्दा बन चुका है क्योंकि यह स्वास्थ्य, समानता, अर्थव्यवस्था और समुदायों के समग्र कल्याण को प्रभावित करता है, अक्सर मौजूदा सामाजिक असमानताओं को बढ़ाता है और सामाजिक न्याय और शासन के लिए नई चुनौतियां पैदा करता है।
– दिव्यांशु झा
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा से पत्रकारिता एवं जनसंचार में परास्नातक कर रहे हैं।)