Gandhi: यात्रा वृतांत स्थान: चम्पारण (बिहार) से वर्धा (महाराष्ट्र) दिनांक: 3 सितंबर 2024
चंपारण के एक छोटे से गांव भटहां से दिल में ढेरों सपने सजाएं अपने सफर के लिए मै रवाना हुआ और मेरे साथ मेरे पिता भी थे जो इस पूरे सफर में मेरे सारथी बने रहे। सफर की शुरुआत 3 सितम्बर 2024 को चंपारण से हुई। परंतु पूरे घर में दो-तीन दिन पहले से ही मेरे जाने का पूरा माहौल बना हुआ था।मेरी मां की आँखें बहुत नम थी मेरे जाने के ग़म में मेरी मां के आंखों से निकलते आंसु बिना कुछ कहे भी अपने आप में बहुत कुछ कह रही थी।
मां-बेटे का प्यार कितना अनमोल होता है अब जब कभी भी उन आंसुओं के बारे में सोचता हुं तो मुझे मेरी मां की यादें घर की ओर खींच ले जाती है। यात्रा के एक दिन पहले मां ने बहुत सारे भोजन की सामग्री तैयार कर के रख दी और मेरे सारे जरूरत के समान को अच्छे ढ़ंग से संग्रहीत कर के एक जगह पर रख दी। यात्रा के पहले दिन की शुरुआत मेरे स्नान-ध्यान करने से हुआ तत्पश्चात मैं परम पिता परमेश्वर का आशीर्वाद लिया अपने घर के सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया सबके आंखों में आंसु थे शिवाए मेरे क्योंकि मैं बहुत खुश था कि मैं घर से कही बाहर जा रहा हूं पढ़ने के लिए नए-नए जगह देखने के लिए नए- नए लोगों से मिलने के लिए यही सब बातें सोच कर मैं मन ही मन बहुत खुश था। परन्तु जैसे ही मेरी यात्रा आगे बढ़ी मुझे घर की याद सताने लगी और मैं फुट फुट कर रोने लगा अपने घर वालो के लिए पापा ने अपने कंधे पर मुझे सुला कर शांत करवाया। हमारी यात्रा मंगलमय हो इसकी कमाना करते हुए मै और मेरे पापा ट्रेन में अपना स्थान ले कर बैठ गए और ट्रेन की प्रस्थान करने का इंतेज़ार करने लगे।
ट्रेन प्रस्थान करने में अभी थोड़ा विलम्ब था तब तक मै और मेरे पापा मां के द्वारा बनाए गए लिट्टी चोखा खा कर अपने भूख को मिटा रहे थे इतने में ट्रेन का समय हो गया ट्रेन अपने जगह से आगे की ओर प्रस्थान किया।
रास्ते में सुंदर पहाड़ियों, नदियों और प्रकृति की सुंदरता को निहारते –निहारते कब वर्धा आ गया मालूम ही नहीं पड़ा। इस सुंदरता के क्रम में सबसे पहले पटना गंगा नदी के ऊपर बना दीघा रेलवे पुल जैसे कि हम सब जानते है कि गंगा नदी जो देश की सबसे लंबी नदी है।
पुल से नदियों की प्राकृतिक सौंदर्य और गंगा नदी के लहरों का सुखद अनुभव मिलता है। जैसे ही हम पुल को पार करते है हमे जंगलों की तरह घने केले की खेती दिखाई पड़ती है वो मनोरम दृश्य होता है। हमारी ट्रेन जैसे ही कटनी को पार करती है तो आंखों को ऐसे ऐसे दृश्य दिखाई पड़ते हैं जिन्हें देख लगता है की आंखों का जन्म सफल हो गया हो सुंदर-सुंदर पहाड़ियां, पहाड़ियों को काट बनाए गए रास्ते, मां नर्मदा की गोद से निकलती हमारी ट्रेन मुझे काफी आनंदित कर रही थी और मेरी यात्रा को अत्यधिक रोमांचित कर रही थी।
बस इन्हीं दृश्यों को निहारते हुए हम आ पहुंचे गांधी की कर्मभूमि वर्धा (महाराष्ट्र)
– प्रियांशु कुमार
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में अध्ययनरत स्नातक जनसंचार के छात्र हैं।)