Hindi: हिंदी विश्व की एक समृद्ध भाषा है। हिंदी समृद्ध साहित्य के साथ-साथ व्यापक क्षेत्र में प्रयुक्त संप्रेषण का माध्यम भी है। आज हिंदी लगभग 150 देशों में बोली जाती है। संविधान के अनुच्छेद-343 में वर्णित है कि संघ की राजभाषा हिंदी तथा लिपि देवनागरी होगी। यदि हम हिंदी भाषा पर चर्चा करते हैं तो श्री महात्मा गांधी जी का नाम अवश्य लिया जाता है। श्री गांधी जी हिंदी के अनन्य सेवक थे। उनकी प्रबल इच्छा थी हिंदी को देश की राष्ट्रभाषा व राजभाषा का गौरव प्राप्त हो। उन्होंने अपनी अनेक पुस्तकों, यथा ‘हिंद स्वराज’ आदि में हिंदी भाषा के महत्व को रेखांकित किया है। इसी के साथ, बापू जी ने हरिजन बंधु, हरिजन सेवक, यंग इंडिया आदि पत्रिकाओं में भी हिंदी भाषा के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त किए हैं। श्री गांधी जी ने हिंदी भाषा की निम्नलिखित परिभाषा दी है।
“मैं हिंदी भाषा उसे मानता हूँ जो उत्तर भारत के हिंदुओं तथा मुस्लिमों द्वारा बोली जाती है तथा नागरी व उर्दू लिपि में लिखी जाती है।”
लिपि की समस्या पर भी बापू जी ने अपने विचार व्यक्त किए हैं। बापू जी के अनुसार “लिपि की समस्या टेढ़ी खीर है, नागरी तथा उर्दू दोनों लिपियों का प्रयोग किया जाए तथा अंत में रह जाएगी उसे राष्ट्रीय लिपि का दर्जा दिया जाएगा।”
श्री गांधी जी का मानना था कि मातृभाषा किसी भी विषय को सहजता से समझा जा सकता है, जो वैज्ञानिक भी है। वे चाहते थे कि कांग्रेस अधिवेशन के कामकाज की भाषा भी हिंदी (हिंदुस्तानी) ही हो। श्री गांधी जी के इस माँग को स्वीकार भी किया गया। बापू जी की भाषानीति को समझने हेतु निम्न चार प्रश्नों को समझना होगा , जिसका उल्लेख प्रख्यात भाषावैज्ञानिक डॉक्टर भोलानाथ तिवारी जी ने अपनी पुस्तक ‘राजभाषा हिंदी’ में ‘गांधी जी की भाषानीति’ नामक अध्याय के प्रथम व द्वितीय पृष्ठ पर किया था।
शिक्षा के माध्यम की भाषा क्या होनी चाहिए ?
श्री महात्मा गांधी जी का मानना था कि शिक्षा के माध्यम की भाषा हिंदी ही होनी चाहिए क्योंकि हम हिंदी आसानी से बोल, पढ़ तथा लिख सकते हैं। उनका मानना था कि सभी प्रकार के विषयों की शिक्षा हिंदी में दी जानी चाहिए। मैं आपको बता दूँ , हमारे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) में सभी विषयों की पढ़ाई हिंदी माध्यम में होती है। यहाँ प्रबंधन, संगणक प्रौद्योगिकी, विधि की भी पढ़ाई हिंदी में ही होती है, जो हमारे लिए गौरव की बात है।
प्रांतीय कामकाज की भाषा क्या हो ?
बापू जी का कहना था कि प्रांतीय कामकाज की भाषा उस प्रांत में प्रचलित भाषा होनी चाहिए। इस प्रकार श्री गांधी जी मातृभाषा को विशेष महत्व दे रहे थे।
केंद्रीय शासन-प्रशासन की भाषा क्या हो ?
श्री गांधी जी के अनुसार केंद्रीय शासन-प्रशासन के कामकाज की भाषा हिंदी ही होनी चाहिए। इस तरह बापू जी हिंदी को राजभाषा की प्रतिष्ठा देना चाहते थे।
14 सितंबर 1949 ईस्वी को बापू जी का यह स्वप्न पूर्ण हुआ व हिंदी को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। इस दिन को हम राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाते हैं।
अन्य देशों से पत्राचार के माध्यम की भाषा क्या हो ?
इस प्रश्न का उत्तर भी बापू जी ने यही दिया कि अन्य देशों से पत्राचार की भाषा भी हिंदी होनी चाहिए क्योंकि उसमें अन्य देशों से संवाद स्थापित करने की क्षमता है।
अतः बापू जी हिंदी के वैश्विक महत्व को प्रतिपादित कर रहे थे। प्रकारांतर से कहा जाए तो बापू जी सभी सभी तरह के कार्यों तथा व्यवहारों में हिंदी भाषा का प्रयोग चाहते थे। इसी के साथ, वे अन्य भाषाओं को भी सीखने के लिए कहते थे।
श्री महात्मा गांधी जी चाहते थे कि हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाए। उनका मानना था की हिंदी में राष्ट्रभाषा बनने की सभी विशेषताएँ विद्यमान हैं। अतः हिंदी को ही राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया जाना चाहिए। गुजराती शिक्षा परिषद के अधिवेशन (1917 ईस्वी) में बापू जी ने कहा था कि हिंदी में राष्ट्रभाषा बनने की क्षमता है। इसी के साथ, उन्होंने इसी अधिवेशन में राष्ट्रभाषा बनने हेतु किसी भाषा में जो योग्यता व विशेषता होनी चाहिए, उसके बारे में बताया है।
बापू जी ने किसी भाषा के राष्ट्रभाषा बनने के लिए निम्न विशेषताओं को अनिवार्य बताया है।
- वह अमलदारों (जनसाधारण) के लिए सरल होनी चाहिए।
- यह ज़रूरी है कि भारत की अधिकांश जनता उस समृद्ध भाषा का प्रयोग करती हो।
- उस भाषा में परस्पर सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक व्यवहार होना चाहिए।
- वह भाषा राष्ट्र के लिए आसान होनी चाहिए।
- उस भाषा पर विचार करते समय क्षणिक अथवा अल्पस्थायी स्थिति पर ज़ोर नहीं देना चाहिए।
उपर्युक्त सभी विशेषताएँ हिंदी भाषा में विद्यमान हैं, इस प्रकार हिंदी राष्ट्रभाषा बनने की योग्यता रखती है।
हमारे विश्वविद्यालय में 14 सितंबर 2024 ईस्वी को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के पावन अवसर पर ‘राजभाषा के रूप में हिंदी के 75 वर्ष नामक विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। इस संगोष्ठी के अतिथि एवं मुख्य वक्ता तमिलनाडु, पंजाब सिक्किम के पूर्व राज्यपाल श्री बनवारीलाल पुरोहित जी थे। उन्होंने श्री गांधी जी के हिंदी के प्रति समर्पण को इन शब्दों में व्यक्त किया “श्री महात्मा गांधी जी हिंदी के अनन्य सेवक थे। बापू जी की मृत्यु से हिंदी को बड़ा झटका लगा है व बहुत नुकसान हुआ।”
निष्कर्ष के तौर पर कहा जाए तो श्री महात्मा गांधी जी ने अंतिम साँस तक हिंदी की सेवा की। आपने हिंदी भाषा एवं साहित्य के विकास हेतु निरंतर प्रयास किया। हम राष्ट्रपिता के सेवा एवं समर्पण भाव को नमन करते हैं।
अंत में मैं यही कहना चाहूँगा –
” हिंदी गहरी सिंधु है, हम सब गोताखोर ।
हिंदी के इस सिंधु में, मन को अपने बोर।”
–यशवर्धन
विद्यार्थी, हिंदी भाषा में चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्)
मेरा लेख प्रकाशित करने हेतु सम्यक् भारत तथा आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।