Journalism In India: आज भी हमें ऐसी घटनाएं देखने को मिल रही हैं, जब सरकार और प्रशासन हमें आश्वासन देते हैं कि वे हमारी रक्षा करेंगे। लेकिन जब इस देश में एक पत्रकार ही सुरक्षित नहीं है, तो आम जनता का क्या होगा? यदि हम ही अपनी आवाज़ नहीं उठा पाएंगे, तो समाज और लोगों के हितों के लिए कैसे लड़ेंगे?
पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या केवल एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर हमला है। उनकी हत्या जिस निर्ममता से की गई, वह दिल दहलाने वाली है। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि उन्होंने अपने पूरे करियर में ऐसी भयावह हत्या कभी नहीं देखी। रिपोर्ट के अनुसार, मुकेश की पांच पसलियां टूटी हुई थीं, उनके दिल के चार टुकड़े कर दिए गए थे, और सिर पर 15 गहरे घाव थे। हत्या इतनी बेरहमी से की गई कि कोई उसकी कल्पना भी नहीं कर सकता।
अब सवाल यह है कि क्या केवल वही ठेकेदार मुकेश का हत्यारा है, जिसने उन पर हमला किया? बिल्कुल नहीं। मुकेश की हत्या हर उस व्यक्ति ने की है, जिसने उस ठेकेदार से रिश्वत खाई थी। उनकी हत्या हर उस व्यक्ति ने की, जिसने सड़क निर्माण घोटाले में हिस्सा लिया था। उनकी हत्या हर उस व्यक्ति ने की, जो इस जघन्य अपराध पर अब तक खामोश है—सरकार खामोश है, विपक्ष खामोश है, और देश की 140 करोड़ जनता में से अधिकतर लोग खामोश हैं।
देश की जनता को एक बार सोचना चाहिए—आखिर यह कब तक चलता रहेगा? क्या यही हश्र होगा हर उस व्यक्ति का, जो जनता की आवाज़ उठाएगा?
मुकेश पहले पत्रकार नहीं थे, जिनकी सच दिखाने के कारण हत्या कर दी गई, और न ही वे आखिरी होंगे। इस देश में ईमानदार पत्रकारिता की कीमत जान देकर चुकानी पड़ रही है।
महाराष्ट्र के रत्नागिरी में शशिकांत वारिशे को एक जमीन कारोबारी ने महज इसलिए थार से कुचलकर मार डाला, क्योंकि उन्होंने उसके खिलाफ खबर लिखी थी।
बिहार के मधुबनी में अविनाश झा की हत्या इसलिए हुई, क्योंकि उनकी रिपोर्ट में अस्पतालों में चल रहे अवैध धंधों का पर्दाफाश होने वाला था।- मध्य प्रदेश के भिंड में संदीप शर्मा ने रेत माफिया और पुलिस प्रशासन के गठजोड़ का खुलासा किया, तो उन्हें ट्रक से कुचलकर मार दिया गया।
उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में अवैध शराब के खिलाफ अभियान चलाने वाले पत्रकार को मौत के घाट उतार दिया गया, जबकि उन्होंने पहले ही पुलिस को बताया था कि उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही है।
इसी तरह कश्मीर में शुजात बुखारी, झारखंड में चंदन तिवारी, कर्नाटक में गौरी लंकेश, गुजरात में किशोर दवे, बिहार में राजदेव रंजन समेत कई पत्रकारों की हत्या कर दी गई।
हर सरकार भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात करती है, लेकिन क्या किसी सरकार में इतनी हिम्मत है कि वह खुले तौर पर यह कह सके कि उनकी सरकार में खबरों की कवरेज करने पर किसी पत्रकार की जान नहीं जाएगी? क्या कोई ऐसा नेता है, जो यह वादा कर सके कि सच दिखाने के लिए किसी पत्रकार को अपनी जान नहीं गंवानी पड़ेगी?
देश को अब यह तय करना होगा कि वह इस अन्याय के खिलाफ खड़ा होगा या हमेशा की तरह खामोश रहेगा!
-आशीष चंद्र
(लेखक महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में अध्ययनरत पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के छात्र हैं।)