MGAHV: महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर समता भवन स्थित माधवराव सप्रे सभागार में 06 दिसंबर को डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर महापरिनिर्वाण दिवस के अवसर पर एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर “राष्ट्र निर्माण में आंबेडकर की भूमिका” और “दलित मानवाधिकार” विषय पर चर्चाएं की गईं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. शक्ति कुमार (आचार्य, आर्थिक अध्ययन एवं योजना केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली) ने “राष्ट्र निर्माण में आंबेडकर की भूमिका” पर अपने विचार रखे। विशिष्ट वक्ता के रूप में प्रो. शशि कुमार (आचार्य एवं अध्यक्ष, मानवाधिकार विभाग, बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ) ने “दलित मानवाधिकार” विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम की अध्यक्षता मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. फरहद मलिक ने की।
कार्यक्रम का स्वागत भाषण देते हुए जनसंचार विभाग के अध्यक्ष, प्रो. कृपाशंकर चौबे जी ने अतिथियों की उपस्थिति को जनसंचार विभाग के लिए गर्व का क्षण बताया। उन्होंने अतिथियों का संक्षिप्त परिचय देते हुए अकादमिक जगत में उनके योगदानों का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रो. शक्ति कुमार ने अपने वक्तव्य की शुरुआत संविधान सभा में डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के योगदान की चर्चा से की। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर की संविधान सभा में उपस्थिति ने भारत देश को एक राष्ट्र के रूप में स्थापित किया। उनका कहना था कि डॉ. आंबेडकर के विचार और नेतृत्व ने भारतीय संविधान को केवल एक कानूनी दस्तावेज़ ही नहीं, बल्कि एक सामाजिक क्रांति का आधार बनाया, जो समाज में समानता और न्याय की अवधारणा को स्थापित करने में मददगार साबित हुआ।
प्रो. कुमार ने डॉ. आंबेडकर की “वन मैन, वन वोट” की परिकल्पना की भी सराहना की और इसे भारतीय लोकतंत्र की सफलता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण बताया। इसके अलावा, प्रो. कुमार ने डॉ. आंबेडकर के एक महत्वपूर्ण कथन का उल्लेख करते हुए कहा, “किसी समाज की सामाजिक स्थिति का सही अनुमान उस समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति की स्थिति से लगाया जा सकता है।”
उन्होंने बताया कि डॉ. आंबेडकर ने महिलाओं के अधिकारों के लिए कई क्रांतिकारी कदम उठाए थे, जैसे कि मैटरनिटी लीव का प्रावधान, महिलाओं को समान वेतन का अधिकार, और माता-पिता की संपत्ति में महिलाओं के बराबरी के अधिकार की दिशा में कार्य किया। इन महत्वपूर्ण सुधारों ने समाज में महिलाओं की स्थिति को सशक्त किया और उन्हें समान अधिकार दिलाने की दिशा में एक अहम कदम बढ़ाया।
विशिष्ट अतिथि प्रो. शशि कुमार ने अपने वक्तव्य में डॉ. आंबेडकर के शिक्षा, राजनीति और समाज में योगदान को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर सामाजिक लोकतंत्र, राजनीतिक लोकतंत्र और आर्थिक लोकतंत्र के सबसे बड़े समर्थक थे। उन्होंने डॉ. आंबेडकर के संविधान सभा में दिए गए आखिरी वक्तव्य का भी उल्लेख किया, जिसमें आंबेडकर ने चेतावनी दी थी कि भारत अंतर्विरोधों के दौर में प्रवेश कर रहा है।
साथ ही, उन्होंने डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित “बहिष्कृत भारत” और “मूकनायक” समाचार पत्रों के माध्यम से समाज को नई दिशा देने के प्रयासों को सराहा। प्रो. शशि कुमार ने डॉ. आंबेडकर और महात्मा गांधी के बीच समानताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों नेताओं ने समाज में अन्याय का विरोध करने के लिए सत्याग्रह का मार्ग अपनाया था। वर्तमान सामाजिक स्थितियों पर विचार करते हुए उन्होंने कहा कि 78 वर्षों के बाद भी समाज में समानता की कमी बनी हुई है, और देश में आज भी कई बुनियादी समस्याएं बरकरार हैं।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान विद्यापीठ के अधिष्ठाता प्रो. फरहद मलिक ने अपने वक्तव्य में डॉ. आंबेडकर के जीवन संघर्षों और उनके सामाजिक आंदोलनों का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर का जीवन समाज में व्याप्त असमानताओं और उत्पीड़न के खिलाफ निरंतर संघर्ष की मिसाल है।प्रो. मलिक ने डॉ. आंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म को अपनाने के प्रसंग का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि डॉ. आंबेडकर का मानना था कि धर्म ऐसा होना चाहिए जिसमें सभी को समान स्वतंत्रता और सम्मान मिले। बौद्ध धर्म ने उन्हें वह मार्ग दिखाया, जिसमें सामाजिक समानता और स्वतंत्रता की रक्षा की जाती है।
कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन जनसंचार विभाग के शोधार्थी अरविंद कुमार ने किया। वहीं, कार्यक्रम का कुशल संचालन जनसंचार विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ. रेनू सिंह ने किया।
रिपोर्ट- आशीष रंजन चौधरी
संस्थापक, संपादक (सम्यक भारत)