MVA: महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) ने अभूतपूर्व सफलता हासिल करते हुए 230 में से 132 सीटों पर विजय प्राप्त की। इस शानदार जीत के बाद, भाजपा के नेतृत्व वाले ‘महायुति’ ने कांग्रेस, एनसीपी (शरद पवार गुट) और उद्धव ठाकरे की शिवसेना से बने महाविकास अघाड़ी (MVA) को महज 50 सीटों तक सीमित कर दिया। इस चुनाव ने न केवल महाराष्ट्र की राजनीति का नया समीकरण स्थापित किया, बल्कि महाविकास अघाड़ी के अंदर गहरे संघर्षों और फैसलों की गलतियां भी उजागर कीं, जो उनकी हार का कारण बनीं।
उद्धव ठाकरे और शिवसेना की सिमटती उम्मीदें
शिवसेना (उद्धव ठाकरे) ने इस चुनाव में कुल 89 सीटों पर अपनी ताकत आजमाई थी, लेकिन पार्टी सिर्फ 20 सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई। इसका मतलब है कि पार्टी ने अपनी कुल सीटों का महज 22% ही बचा पाया, जो उसके लिए बहुत बड़ा झटका था। विशेष रूप से, एकनाथ शिंदे के शिवसेना से अलग होने के बाद, ठाकरे गुट को अस्तित्व की बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। पार्टी के अंदर मतदाताओं के बीच संदेश का स्पष्ट होना, चुनावी रणनीति में बदलाव और जमीनी हकीकत से जुड़ी समस्याओं का निस्तारण न करना भी हार के प्रमुख कारण बने।
उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना के वरिष्ठ नेता संजय राउत ने चुनाव परिणामों के खिलाफ सोशल मीडिया पर अपनी निराशा जताते हुए पुनः मतदान की मांग की। उनका आरोप था कि यह परिणाम जनता की असली आवाज़ नहीं हैं। उनकी पार्टी को उम्मीद थी कि महाविकास अघाड़ी के रूप में गठबंधन के बावजूद वे जीत हासिल करेंगे, लेकिन परिणाम इसके उलट आए।
भाजपा की विजय और कांग्रेस की शर्मनाक हार
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव न केवल 2014 और 2019 से बेहतर साबित हुआ, बल्कि यह महात्मा गांधी से लेकर नरेंद्र मोदी तक की राजनीतिक लहरों के बीच पार्टी की ताकत का संकेत भी था। महाविकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस, उद्धव ठाकरे की शिवसेना और शरद पवार की एनसीपी शामिल थीं, ने पिछले लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था, जिससे कांग्रेस को काफी उम्मीदें थीं। कांग्रेस की स्थिति में भी सुधार हुआ था और उसने 14 सीटों पर जीत हासिल की थी।
लेकिन इस बार, कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत निराशाजनक रहा। पार्टी ने 103 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन केवल 16 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई। कांग्रेस का यह प्रदर्शन न केवल उसकी रणनीतिक विफलता को दर्शाता है, बल्कि इसका मतलब यह भी था कि पार्टी का राष्ट्रीय नेतृत्व, जैसे राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे का प्रचार भी वोटों को पार्टी के पक्ष में परिवर्तित करने में सफल नहीं हो सका। इससे पहले 2014 में भी कांग्रेस ने मोदी लहर के बावजूद 40 सीटें जीती थीं और 2019 में भी पार्टी ने अपनी ताकत से 44 सीटें हासिल की थीं। यह संकेत था कि पार्टी को अपने बूते फिर से वापसी करनी चाहिए थी, लेकिन इस बार उसने ऐतिहासिक रूप से अपनी सबसे कम सीटें जीतीं।
एनसीपी का सबसे खराब प्रदर्शन
महाविकास अघाड़ी में सबसे खराब प्रदर्शन शरद पवार की पार्टी, एनसीपी का रहा। एनसीपी ने 87 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा, लेकिन इनमें से केवल 10 ही जीत पाए। शरद पवार के पोते युगेंद्र पवार को अपने चाचा अजीत पवार के खिलाफ एक लाख से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा। शरद पवार ने अब तक इस हार पर कोई टिप्पणी नहीं की है। हालांकि, लोकसभा चुनावों में उनकी पार्टी ने 16 सीटों में से आठ सीटें जीतकर एक मजबूत प्रदर्शन किया था, लेकिन इस बार भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया।
एनसीपी की हार का एक और कारण चुनाव चिन्ह से संबंधित था। चुनाव आयोग ने 163 निर्दलीय उम्मीदवारों को “तुरही” (Trumpet) चिन्ह आवंटित किया था, जो शरद पवार के गुट के चिन्ह से काफी मेल खाता था। इससे मतदाताओं में भ्रम उत्पन्न हुआ, क्योंकि 78 निर्दलीय उम्मीदवारों ने उन सीटों पर चुनाव लड़ा जहां एनसीपी के उम्मीदवार थे। इनमें से कुछ उम्मीदवारों के नाम भी एनसीपी के उम्मीदवारों से मिलते-जुलते थे, जिससे उनकी पहचान और प्रचार में समस्या आई।
महिला मतदाताओं का प्रभाव और मुख्यमंत्री योजना
महाविकास अघाड़ी की हार के पीछे एक महत्वपूर्ण कारण यह भी था कि भाजपा ने अपनी महिला मतदाता योजना पर ध्यान केंद्रित किया था। एकनाथ शिंदे की सरकार ने “लड़की बहिन योजना” को लागू किया था, जिसके तहत 21 से 65 वर्ष की महिलाओं को 1,500 रुपये मासिक सहायता प्रदान की जा रही थी। इस योजना का असर महाविकास अघाड़ी पर पड़ा और भाजपा ने महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में किया। यह योजना महाराष्ट्र की 2.34 करोड़ महिलाओं तक पहुंचने में सफल रही। इस योजना ने महायुति के पक्ष में मतदान करने वाली महिलाओं की संख्या को बढ़ाया, जिसका फायदा भाजपा को हुआ।
महाविकास अघाड़ी ने इस योजना का विरोध किया था और बाद में अपनी घोषणापत्र में एक समान योजना को शामिल किया था, लेकिन इस बदलाव से कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा।
अन्य चुनौतियां और जमीनी हकीकत
महाराष्ट्र में बेरोजगारी, किसानों का संकट और मराठा समुदाय के आरक्षण जैसे मुद्दे बड़े हैं, जो महाविकास अघाड़ी के लिए चुनावी प्रचार का हिस्सा रहे। इसके बावजूद, जमीनी हकीकत को लेकर महाविकास अघाड़ी की रणनीति पूरी तरह से कारगर नहीं हो पाई। भाजपा ने मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में भी अच्छा प्रदर्शन किया, जो पारंपरिक रूप से महाविकास अघाड़ी के प्रभाव वाले क्षेत्र माने जाते थे।
इस चुनाव के परिणामों ने यह स्पष्ट कर दिया कि भाजपा ने विकास के मुद्दों पर फोकस किया, खासकर शहरी क्षेत्रों में, जहां सड़कें, पानी और परिवहन जैसे मुद्दों पर बहस चल रही थी। हालांकि, महाविकास अघाड़ी के खिलाफ गहरे विरोध के बावजूद, भाजपा ने इन मुद्दों को दरकिनार करते हुए वोटों की भारी जीत हासिल की।
महाविकास अघाड़ी की हार के कारण
महाविकास अघाड़ी की हार के कई कारण रहे, जिसमें जमीनी हकीकत से दूरी, भाजपा की सशक्त योजना, और चुनाव चिन्ह से जुड़ी समस्या प्रमुख थीं। भाजपा ने महिला मतदाताओं को अपने पक्ष में लाकर और अपनी योजनाओं के जरिए महाविकास अघाड़ी के खिलाफ आंधी चला दी, जिसने गठबंधन को सत्ता से बाहर कर दिया।