Poetry: हम ना जाने कैसे है?- निखिल तुरकर

Poetry: हम ना जाने कैसे है?- निखिल तुरकर

हम देहाती हम गंवार है , हम उन्नीस सौ बीस के है.
गोली–कंचे के शौक पाले,हम सदी इक्कीस के है।
हमको चौपाटी से ज्यादा,गांव–चौपाल प्यारे है.
कोई होंगी स्वर्ग अप्सरा ,हम टूटे से तारे हैं।
हम समंदर हम खंडहर है,हम वीराने जैसे हैं.
तुम बतलाओ तो हम जाने,हम ना जाने कैसे हैं.

हमको ना आती फ्लर्टिंग-व्लिर्टिंग , हम थोड़े भोले–भाले हैं

हम किसान के बेटे हैं जी, थोड़े रंग के काले हैं।
हम ना खेले वीडियो गेम,गोली–कंचे के शौक पाले हैं.
हम अतरंगी,हम आवारा, हम जग से निराले हैं ।
हम डोरेमोन, हम शिनचेन से ,हम बेगाने जैसे हैं.
तुम बतलाओ तो हम जाने ,हम ना जाने कैसे हैं?

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कर्मभूमि है खेती हमारी, हम गांव से आते हैं.
सर पर गमछा हम लपेटे, आम नीम ही भाते है।
हम ना यो–यो हनी करते, देश की धरती गुनगुनाते हैं.
मां–पापा अदब लिहाज,और संस्कार हमें बतलाते हैं ।
हम संस्कारी,हम गुणवान है,हम पैमाने जैसे है..
तुम बतलाओ तो हम जाने,हम ना जाने कैसे हैं???

यार सभी हम देहाती है,बाइक– राइडिंग ना जाने है..
पेड़ चढ़ाई पूछो तुम,अमरूद–आम चोर के खाने हैं।
खेल से हमको कोई रोके,उसकी बाड़ी तोड़े है ..
एक गेंद के खातिर सारे,यार हम पैसे जोड़े है।
हम नटखट है,हम चुलबुल है,हम सयाने जैसे है.
तुम बतलाओ तो हम जाने,हम ना जाने कैसे हैं?

निखिल तुरकर

गांव–पुनी (दीनी) वारासिवनी बालाघाट MP

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