यह कहानी सिर्फ एक स्त्री के साहस और एक पुरुष के समर्पण की नहीं है, यह उन अनगिनत महिलाओं के अधिकारों की बात है जिनकी आवाज कभी सुनी नहीं गई। सावित्रीबाई फुले की यह कहानी शुरू होती है उस दिन, जब एक नन्ही दुल्हन के रूप में वह अपने पति ज्योतिबा फुले के घर आईं। उनके कदम घर में तो पड़े लेकिन उनकी दुनिया बहुत छोटी और सीमित थी। उन्हें नहीं पता था कि उनका जीवन एक ऐसी क्रांति का हिस्सा बनेगा जो सदियों तक इतिहास के पन्नों में दर्ज होगी।
एक आदर्श जीवनसाथी वह होता है जो अपने साथी की आत्मा को पढ़ सके, उसकी क्षमताओं को पहचान सके और उसे अपने सपनों की ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए प्रेरित करे।सावित्रीबाई फुले के जीवन में ज्योतिबा फुले वही साथी थे | एक अद्भुत जीवनसाथी जो सिर्फ उनके पति नहीं बल्कि उनके आदर्श, शिक्षक और सबसे बड़े समर्थक बने।
सावित्रीबाई एक साधारण ग्रामीण लड़की थीं जिनकी आँखों में सपनों की चमक तो थी पर उन सपनों को साकार करने का कोई माध्यम नहीं था। जब उनका विवाह ज्योतिबा फुले से हुआ तब उनके जीवन का अर्थ ही बदल गया। ज्योतिबा ने न केवल सावित्रीबाई को पढ़ने-लिखने का अवसर दिया बल्कि उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे समाज की सबसे बड़ी क्रांति का हिस्सा बन सकती हैं। सावित्रीबाई के जीवन का सबसे खूबसूरत मोड़ तब आया जब ज्योतिबा ने उन्हें पहली बार किताब पकड़ाई। यह किताब केवल ज्ञान का स्रोत नहीं थी यह उनके लिए एक नई दुनिया का दरवाजा थी। ज्योतिबा ने न केवल उन्हें अक्षर ज्ञान दिया बल्कि यह विश्वास भी दिलाया कि वह समाज की बेड़ियों को तोड़ सकती हैं। उस युग में जब महिलाएं अपने अधिकारों के लिए केवल सपने देख सकती थीं ज्योतिबा ने सावित्रीबाई को उनके सपनों की उड़ान दी।
कल्पना कीजिए, उस समय की जब एक महिला का पढ़ना पाप समझा जाता था। सावित्रीबाई जब पहली बार किताबें लेकर घर से बाहर निकलीं तो लोगों ने उन पर गंदगी फेंकी, अपमानजनक बातें कहीं। लेकिन हर अपमान के बाद भी ज्योतिबा ने उनका हाथ थामे रखा | सिर्फ शिक्षा तक ही नहीं ज्योतिबा ने सावित्रीबाई का एक ऐसे समाज निर्माण में साथ दिया जहां स्त्री-पुरुष समान हों। जब सावित्रीबाई लड़कियों को स्कूल में पढ़ाने जाती थीं तो लोग उन्हें अपमानित करते पर ज्योतिबा उनके साथ खड़े रहते। वह उनके संघर्ष में ढाल बन गए और उनकी हर हार को जीत में बदलने की प्रेरणा बने।ज्योतिबा का यह विश्वास और उनका निस्वार्थ प्रेम ही था जिसने सावित्रीबाई को न केवल एक शिक्षिका बल्कि सामाजिक न्याय का प्रतीक बना दिया। वह सिर्फ एक दंपति नहीं थे वे एक आदर्श थे कि सच्चा जीवनसाथी वही होता है जो अपने साथी के सपनों को अपना बना ले।
आज जब हम सावित्रीबाई फुले के योगदान को याद करते हैं तो उनके संघर्षों के पीछे छिपे ज्योतिबा के स्नेह, समर्पण और अद्वितीय योगदान को नमन करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। उन्होंने हमें सिखाया कि एक अच्छा जीवनसाथी सिर्फ साथ नहीं चलता वह हर कदम पर हाथ थामे रखता है, हर मुश्किल में सहारा देता है और हर स्वप्न को साकार करने में सबसे बड़ा सहयोगी बनता है। ऐसा जीवनसाथी हर किसी के जीवन में होना चाहिए जो हर अंधकार में रोशनी बन सके |
– वेदिका मिश्रा
(प्रधान संपादक, सम्यक भारत)