Shivaji Jayanti: गोविंद पानसरे की पुस्तक “शिवाजी कौन थे” पर संवाद कार्यक्रम का आयोजनमहात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में 20 फरवरी 2025 को शाम 6 बजे AISF MGAHV यूनिट द्वारा एक महत्वपूर्ण संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम का विशेष अवसर था गोविंद पानसरे के 11वें शहादत दिवस का, जिस पर उनके द्वारा लिखित पुस्तक “शिवाजी कौन थे” का वाचन और उस पर विस्तृत चर्चा की गई। इस आयोजन में विश्वविद्यालय के विभिन्न प्रगतिशील छात्रों ने भाग लिया और उन्होंने इस पुस्तक के विचारों पर विचार-विमर्श किया।
गोविंद पानसरे की यह पुस्तक शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व और उनके दृष्टिकोण को एक नई दृष्टि से प्रस्तुत करती है। पानसरे का कहना है कि शिवाजी के विचार और उनकी राजनीति ने न केवल हिंदू समाज को प्रेरित किया, बल्कि उन्होंने एक ऐसी विचारधारा को भी जन्म दिया, जो पूरी तरह से सेक्यूलर और समावेशी थी। पुस्तक में यह स्पष्ट किया गया है कि शिवाजी महाराज ने कभी भी हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को स्वीकार नहीं किया। इसके बजाय, उन्होंने एक समान और समरस समाज की कल्पना की, जिसमें सभी धर्मों और समुदायों को समान सम्मान दिया जाए।
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पुस्तक के माध्यम से शिवाजी के शासन की नींव को समझने का अवसर मिला, जो न केवल युद्धनीति और प्रशासन में समर्पित थी, बल्कि सामाजिक समरसता और धर्मनिरपेक्षता की दिशा में भी उनकी सोच को एक नई दिशा देती थी। यही कारण था कि उन्होंने हमेशा धर्म, जाति और पंथ से ऊपर उठकर अपनी नीति बनाई, जो उनके समय की अन्य राजनीतिक प्रणालियों से पूरी तरह अलग थी। पानसरे की पुस्तक ने इस पहलू को उजागर किया, और यह समझने का प्रयास किया कि किस प्रकार शिवाजी का दृष्टिकोण आज भी समाज के लिए प्रासंगिक है।
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इस कार्यक्रम का संचालन AISF MGAHV यूनिट के सदस्यों जतिन चौधरी और विशाल सिहाग द्वारा किया गया। कार्यक्रम में पुस्तक का वाचन विवेक रंजन, सृष्टि गुप्ता, विश्वास सिंह, राहुल गजानस, हर्ष, आशीष रंजन और अभय दुबे द्वारा किया गया। वाचन के दौरान इन छात्रों ने न केवल पुस्तक के विभिन्न पहलुओं को साझा किया, बल्कि शिवाजी महाराज की वास्तविक विरासत को आत्मसात करने का प्रयास किया।
इसके अलावा, गोविंद पानसरे की क्रांतिकारी सोच और उनके जीवन के संघर्षों पर मीनाक्षी मेहर ने एक विशेष सत्र में प्रकाश डाला। उन्होंने पानसरे की विरासत को आज के समाज के संदर्भ में देखा और यह बताया कि किस प्रकार उनकी सोच ने समाज के कई जटिल मुद्दों पर विचार करने की दिशा दी।
कार्यक्रम में अन्य प्रगतिशील विद्यार्थियों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज की और पुस्तक का वाचन करते हुए शिवाजी महाराज के दृष्टिकोण को बेहतर तरीके से समझने का प्रयास किया। उन्होंने यह माना कि शिवाजी की राजनीति और उनके विचार आज के समय में भी हमारी सोच को प्रभावित कर सकते हैं, विशेष रूप से धर्मनिरपेक्षता और सामाजिक समरसता के संदर्भ में।