संपादकीय : जब इश्क पे ही पाबंदी हो। - आशीष रंजन चौधरी।

संपादकीय : जब इश्क पे ही पाबंदी हो। – आशीष रंजन चौधरी।

मैं, आप या यूं कहें कि हम सब जिस समाज के हिस्से हैं, इस समाज के दो चेहरे हैं, दो चरित्र हैं। एक चेहरा वो है, जो ये समाज अपने ऊपर मुखौटे की तरह हमेशा ओढ़ कर रखता है और वो चेहरा है तथाकथित ‘सभ्यता’ का। जब समाज अपने ऊपर तथाकथित ‘सभ्यता’ का मुखौटा ओढ़ता…

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