Wardha: ‘रोठा’ जो कि हमारे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय से केवल 6-7 किमी की दूरी पर स्थित एक गाँव । जिसे हमारे विश्वविद्यालय ने गोद भी लिया था। दिनांक 26 नवंबर को हम छात्र अपने शिक्षकगणों के साथ रोठा के लिए प्रस्थान किए। रास्ते को देखकर शायद ही कोई होगा जिसे अपने गाँव की याद न आई हो। ग्रामीण महिलाएँ, स्कूल को जाते छोटे-छोटे बच्चे, गायें, बकरियों और संग चरवाहे भी दिखें।
हम 13 छात्रों को मिलाकर चार समुह बनाए गए थे और प्रत्येक समुह के हिस्से में एक-एक क्षेत्र था। अनाथ आश्रम, सहकारी संस्था, ग्राम पंचायत और जैविक खेती। सबसे पहले हम सभी ‘अनाथ आश्रम’ पहुँचे जो कि गाँव के भीतर घुसते ही है। किन्तु वहाँ ‘अनाथ आश्रम’ के अधीक्षक की अनुपस्थिति के कारण हम वहाँ कोई कार्य नहीं कर पाये।
फिर आगे बढ़े गाँव में तो वहाँ के स्थानीय लोगों से गांव के बारे में बातचीत शुरू की। लोग काफी मिलनसार से थे। हमारे पूछने पर उन्होंने बताया कि गाँव में कोई प्राथमिक चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं है। सड़क निमोण कार्य में है। बिजली व पानी की अच्छी सुविधा है और वे सरकारी लाभ से भी लाभान्वित है।
फिर आगे बढ़कर हम हमारे कार्यक्षेत्र रोठा विविध कार्यकारी सेवा सहकारी संस्था पर पहुँचे। रोठा विविध कार्यकारी सेवा सहकारी संघ विशेषकर महिलाओं पर जोर देता है। इसके अन्तर्गत एकल व्यवसाय पर अधिक ध्यान दिया जाता था, जैसे बर्तन, स्टेशनरी जैसे और भी। इन्हीं से हमें पता चला एक ऐसे पम्प के बारे पता चला जिसे सचमुच हम सबने पहली बार देखा था।
पैडल पम्प
पैडल पम्प पानी निकालने के उपयोग में आता है।
यह मशीन – सिंचाई में उपयोगी है।
यह मशीन 25 फीट नीचे को पानी निकालता है।
सबसे जरूरी बात कि यह बिना किसी बिजली/ईंधन के काम करता है।
इस मशीन के निमार्ण में 3500 की लागत आती है जिसे 4500 में बेचा जाता है।
गांव की गलियों को निहारते – निहारते कुछ देर बाद हम सरपंच जी के यहाँ पहुंचे। सरपंच रेखा किशोर ठाकरे जी, दो वर्षों से गाँव की सेवा में हैं। जो कि सिर्फ सातवीं तक ही पढ़ीं है और न जाने कितने वर्षों का अनुभव लिए हैं- गाँव के बारे में पूछने पर बताया स्वास्थ्य सुविधा नहीं है, नाली और रोड निर्माण कार्य में हैं, स्कूल में ड्रेस लगवाई है, RO या स्वच्छ जल की सुविधा नहीं है, कम्पाउड और गेट है। और सबसे जरूरी बात कि पूरे गाँव में अब तक कोई कोर्ट का मामला नहीं हुआ है, मतलब पंचायत बहुत अच्छी तरह से अपने दायित्वों का निर्वहन करती है। और भी पूछने पर वह बोलीं कि मेरा गाँव बहुत अच्छा है, जो कि वाकई बहुत सुन्दर है।
अब हम आगे बढ़े और गाँव के सबसे चर्चित व्यक्ति के पास पहुंचे। जिनका नाम था श्रेणिक इग्ले जिनकी उम्र केवल 30 वर्ष ही थी और उन्होंने परास्नातक रसायनशास्त्र तक की पढ़ाई की हुई है। वे पेशे एक किसान है जो कि जैविक खेती करते हैं और लाखों युवा किसानों के लिए एक आदर्श भी है। किन्तु इसकी शुरुआत श्रेणिक जी के पिता जी स्व. मिलिंद इंग्ले जो कि पेशे से एक सिविल इंजीनियर थे उनके द्वारा की गई थी। उन्होंने बताया कि वे जैविक खेती में खाद के तौर पर, गोबर, ड्राई फ्रूट का सड़न, गौ मुत्र, दूध जैसी चीजों से हो का इस्तेमाल करते हैं जो कि पिछले तीस वर्षों से हो रहा है।
हम आगे बढ़े और हमने देखा एक प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूल जिसमें वहां कि प्रधानाचार्य की अनुमति से हम सब अन्दर गए। संयोग से उस दिन ‘संविधान दिवस’ था तो वहाँ के बच्चों के साथ हमने संविधान की उद्देशिका का पाठ किया। यह सब करते हुए हमें अपने बचपन के स्कूल के दिन याद आ रहे थे। इन सब गतिविधियों में भाग लेने के बाद हम सब वापस अपने विश्वविद्यालय के लिए रवाना हुए।रोठा एक विकासशील गाँव है। वहाँ के लोग भी बहुत अच्छे हैं। गाँव में हरियाली व बेहद शांतिपूर्ण माहौल है। गाँव में होली, दिवाली आदि अनेक त्योहार मनाए जाते है किन्तु प्रमुख त्यौहार पोला है। जिसमें बैल को सजाकर उसकी पूजा की जाती है जिसका सम्बंध खेती से है। पास में सबसे प्रसिद्ध मंदिर राणु माता मंदिर है। गांव की सबसे बड़ी खासियत है कि गांव के लोग एकजुट रहकर आपसी भाईचारा बनाए रखते हैं।
– दिव्या झा
(लेखिका महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में अध्ययनरत स्नातक जनसंचार की छात्रा हैं।)