Wardha: वर्धा, मध्य भारत क्षेत्र में कभी संयुक्त महाराष्ट्र का केंद्र रहा था। यह नागपुर के सबसे समीप है। वर्धा आजादी के आंदोलन और स्वतंत्रता की अलख जगाने के लिए भी जाना जाता है। इसलिए ये इतिहास में अलग ही स्थान रखता है।
यह महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र का विशिष्ट स्थान है। भौगोलिक रूप से काली मिट्टी के लिए भी प्रसिद्ध है। यह भूमि कपास, सोयाबीन और दालों के लिए बहुत उपजाऊ है।
दुनिया भर में यलो टाइगर भी यहां बहुत हैं। वैसे यहां बारह महीनों में अधिकांश समय गर्मी का मौसम रहता है। और, बरसात का खुशनुमा मौसम भी गर्मी को नियंत्रित कर लेता है। यहां जाड़ों के दिन बेहद कम होते हैं। और कड़ाके की सर्दी तो कभी होती ही नहीं।
तो मौसम के लिहाज से आप कभी भी वर्धा और विदर्भ आ सकते हैं। यहां पर आध्यात्म और सर्वोदय के दो पुरोधा भी थे। महात्मा गांधी और आचार्य विनोबा भावे। जिनका का आश्रम भी यहीं है।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान विदेशी वस्त्रों की होली भी यहीं जलाई गई थी और बापू ने भेदभाव को समाप्त करने के लिए सबसे पहले यहां सामाजिक रूप से पिछड़े और निम्न वर्ग को मंदिर में प्रवेश दिलाया था। अगर वाकई कोई गांधी जी को, उनके दर्शन को और उनके जीवन को समझना चाहता है तो उसे सेवाग्राम आश्रम जाकर जरूर देखना चाहिए। वहां अब भी चरखे पर सूत काता जाता है। पारंपरिकता वहां जीवंत है। स्वयं गांधी जी भी वहां जीवंत हैं।सेवाग्राम में कईं कुटियाएं हैं, जहां स्वयं गांधी जी एवं उनके सहयोगी रहा करते थे। यह सब कुटिया अपने आपमें अनोखी हैं और गांधी जी की तत्कालीन जीवनशैली समेटी हुई हैं। आश्रम में गांधीजी और उनकी पत्नी कस्तूरबा गाँधी और उनके अनुयायियों के लिए जो छोटे-छोटे रहने के स्थान बनाए गए थे वह आम गाँव की झोपड़ियाँ जैसे ही थे जातिगत बंधनों को तोड़ने के लिए आश्रम ने आम रसोई में कुछ दलितों को काम पर रखा था जिससे की भेदभाव की भावना को पूरी तरह से खत्म किया जा सके।
वर्धा 1936 से बापू की कर्मस्थली रहा…
उन्होंने राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की भी शुरुआत यहीं से की। महात्मा गाँधी जी हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना की । सीमित का मुख्य उद्देश्य भारत के साथ-साथ विदेशों में भी हिंदी भाषा का प्रचार, प्रसार और विकास करना। हिंदी भाषा को कामकाजी भाषा के रूप में अपनाना साहित्य स्तर पर हिंदी को पेश करना है। जिससे की भारत में एक समान की भावना उत्पन्न हो और एकता की भावना मिल सके।
आज भी वर्धा एक बेहद शांत और अनूठी जगह के रूप में विकसित हुआ है। इस क्रम में ही भारत सरकार ने वर्ष 1997 में महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की भी स्थापना वर्धा में ही की। यह महाराष्ट्र का एकमात्र केंद्रीय विश्वविद्यालय हैं। ये उच्च शिक्षण में हिंदी माध्यम से चलने वाला देश का एकमात्र अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालय है।
हमें गर्व है कि वर्धा में इस तरह के ऐतिहासिक और वर्तमान समय में शिक्षा एवं शांति के उच्च शिखर का गौरव प्राप्त है।
-अखिलेश कुमार ( छात्र, जनसंचार विभाग)